मैने कहा क्यों मेरे लिए स्वयं को बर्बाद कर रहे हो, ये जानते हुए भी की मेरी शादी हो गई है बरा दिलचस्प कहानी

मैने कहा क्यों मेरे लिए स्वयं को बर्बाद कर रहे हो, ये जानते हुए भी की मेरी शादी हो गई है,

आप भी कोई अच्छी लड़की देख कर शादी क्यों नही कर लेते..?उसने कहा मुझ से कौन शादी करेगी..? उसने कहा- क्यों क्या कमी है आप में..? मैने कहा- ये तो तुम बताओगी… की क्या कमी थीं मुझ में..?

मेरे आंखों से आंसू छलक के बाहर निकल गए, क्यों की मैं निशब्द थी, जिदंगी के ऐसे पड़ाव पर थी जहां से मैं चाहते हुए भी कुछ भी नही कर सकती थी ये सब शुरू हुआ जब मैं कॉलेज में थी कॉलेज का पहला साल प्रदीप और मैं सिर्फ दोस्त थे, लेकिन उसकी हाजिरजवाबी, समय पर सबके लिए उपलब्ध रहना सिर्फ कालेज के लड़के ही नहीं प्रोफेसरों को भी अपनी ओर आकर्षित करते थे,

4 साल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नही चला

ना हमने कभी प्यार का इजहार किया ना उससे कभी इस बारे में पूछा, बस एक एहसास था की हम दोनो अब एक दुसरे से प्यार करते हैं हमारी बचकानी बातें अब जिम्मेदारी भरी बातों में बदल गई थी, पहले जहां हम साथ में घूमने की बात करते थे वही बात अब पैसे कहां save करने हैं इस बारे में होती थी भविष्य के ख्वाब साथ बैठ कर बुनते थे

इसी दौरान एक कंपनी में प्लेसमेंट के लिए बैठते हैं दोनो का इंटर व्यू अच्छा जाता है अब हम दोनों को इस बात की खुशी थी की एक ही comapny में नौकरी होगी इससे अच्छा क्या हो सकता है, फिर घर पर बात कर के शादी की बात आगे बढ़ाई जाएगी आज interview का रिजल्ट आने वाला था ये रिजल्ट कम एक नोटिफिकेशन था की कंपनी में एक हो पोस्ट खाली है, हम दोनो mese किसी एक को नौकरी मिलेगी बिना एक पल गंवाए प्रदीप ने बोला तुम्हारी नौकरी ज्यादा जरूरी है क्यों की बिना इसके तुम्हारे घर वाले शायद ना माने

इस लिए मैं कल इंटरव्यू में नही बैठूंगा

और ऐसा ही हुआ मेरी नौकरी मेरे हाथ में थी मैंने घर में सबको बताई अब बारी थी प्रदीप की जॉब की कई कोशिश के बाद प्रदीप की नौकरी अच्छी लग गई और हम दोनो ने साथ 5 साल बिता दिए, शादी की बात दोनो के घर होने लगी अब सही समय था अपने 9 साल पुराने प्यार को घर पर बताने का जैसे मैने घर पर इसकी चर्चा की सब मेरे अगेंस्ट हो गए मुझे सबसे ज्यादा उम्मीद अपनी मां से थी लेकिन उन्होंने भी मेरा सपोर्ट नही किया घर पर ये बात पता चलाने के बाद और तेज़ी से मेरे लिए रिश्ते देखे जाने लगे

प्रदीप को मै कुछ बता नही पा रही थी और घर वालो के सामने मेरी आवाज नही निकल रही थी मैने मां को समझाया की 9 साल से एक दुसरे को जानते है लेकिन उन्हें और पापा को इससे कोई फर्क नही पड़ रहा था, ना चाहते हुए भी मेरी शादी अरुण से हुई, आज भी हमारे और अरुण के बीच पति पत्नी का रिश्ता है लेकिन सिर्फ शारीरिक तौर पर, ना चाहते हुए भी मैं अरुण को मन में नही समा पा रही ना प्रदीप को मन से निकाल पा रही हूं बस अपने मन पर एक पत्नी धर्म का और मां बाप की इज्जत का बोझ धो रही हूं

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