माया 9वीं कक्षा की छात्रा थी और एक ऐसी घटना का शिकार बनी जो उसके जीवन को बदल गई। माया एक होशियार और मेहनती लड़की थी, लेकिन स्कूल के नियम-कायदों ने उसकी पूरी दुनिया हिला दी।
एक दिन, स्कूल के प्रिंसिपल ने सामान्य बैग चेकिंग ड्रामा की घोषणा की, जिसे दो महिला शिक्षिकाओं ने संभाला। यह एक नियमित दिन था, लेकिन माया के लिए यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था। माया अपने बैग की जांच से पहले ही थोड़ा असहज थी और उसने शिक्षकों से निवेदन किया कि उसका बैग सार्वजनिक रूप से न चेक किया जाए। लेकिन उसकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
शिक्षिका 1: “इसका बैग ध्यान से देखना चाहिए। पक्का कुछ छुपा रही होगी।”
माया ने समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन शिक्षकों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसके बैग को ऐसे उल्टा करके झटक दिया गया, जैसे उसमें कोई चोरी का सामान हो। अचानक, सैनिटरी नैपकिन और कुछ दवाइयां फर्श पर गिर गईं।
शिक्षिका 2: “यह गर्भनिरोधक गोलियां हैं। तुम इन्हें क्यों लेती हो?”
शिक्षिका 1 ने कहा, “देखिए तो, आजकल के बच्चों को क्या हो गया है। ऐसी चीजें तो हमें शादी के बाद ही पता चली थी। जरूर स्कूल के किसी लड़के से संबंध होंगे। ये लड़की चरित्रहीन है।”
यह सब माया के लिए बहुत ही शर्मनाक था। उसे सफाई देने का मौका भी नहीं दिया गया। उसके साथ किया गया यह अपमान सहन करना मुश्किल था।
माया: “मैडम, डॉक्टर ने मुझे ये दवाइयां सलाह दी हैं क्योंकि…
उसके कुछ कहने से पहले ही उसे दो थप्पड़ मार दिए गए। उसे प्रिंसिपल के कमरे में ले जाया गया, जहां अगले दिन सच्चाई सामने आई। माया ने प्रिंसिपल को बताया कि वह पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) से पीड़ित है, जो एक हार्मोनल बीमारी है। उसे ये दवाइयां अपने स्वास्थ्य के लिए लेनी पड़ती थीं, न कि किसी और कारण से।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अफवाह फैल चुकी थी कि माया “चरित्रहीन” है। स्कूल के अन्य छात्रों और शिक्षकों ने उसके बारे में तरह-तरह की बातें करना शुरू कर दिया। किसी ने उसके निर्दोष होने की सच्चाई नहीं बताई, और माया को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। एक साल बाद, आखिरकार माया ने स्कूल छोड़ दिया।
यह घटना हमें यह सिखाती है कि एक शिक्षक के रूप में हमें अपने छात्रों को समझने की कोशिश करनी चाहिए, न कि बिना सोचे-समझे उन पर आरोप लगाना। माया की कहानी एक उदाहरण है कि कैसे हमारी एक गलती किसी के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है।
हम एक प्रगतिशील समाज बनने की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारी मानसिकता में बदलाव की अभी भी बहुत जरूरत है। विशेष रूप से जब महिलाओं की बात आती है, तो हमें उन्हें निर्णयात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।
कभी-कभी, जो हम देखते हैं वह सच्चाई का केवल एक पहलू होता है। हर कहानी के पीछे एक और कहानी होती है, जिसे हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए, न कि जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालना चाहिए।